5 Amazing Facts About RSS

       About RSS (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन)


कोई कहता है कि ये संगठन तो केवल हिंदू की बात करता है। कोई कहता है कि ये संगठन मुस्लिमों के खिलाफ है।

तो कोई तो यहां तक कह देता है कि ये संगठन भारत की ही सलाह है। जी हां आप सही समझ पाएं। हम बात कर रहे संसार के सबसे बड़े स्वयं सेवी संगठन यानी RSS की। लेकिन इस संगठन के बारे में तरह तरह की बातें प्रचलित है। पर आज सरकार RSS की सच्चाई क्या है आपके सामने फैक्ट्स रखने से पहले हम आपको बता दे कि हम किसी भी धर्म या संगठन के पक्षधर नहीं हैं। हम केवल आपके सामने आज कुछ फैक्ट्स रखेंगे जिनके आधार पर आपको तय करना है कि RSS के बारे में सही क्या है और गलत क्या है। तो दोस्तो कोई भी राय बनाने से पहले आखिर तक जरूर पढ़े।


RSS जिसका पूरा नाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन है की स्थापना वर्ष उन्नीस सौ पच्चीस में डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने हिंदुओं के एक प्रसिद्ध त्योहार दशहरे के दिन की थी। इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में है। वर्तमान में इसके प्रमुख मोहन भागवत है जो कि उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिन्हें देश में जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई है।. 

लेकिन एक सवाल हमेशा RSS के स्वयंसेवकों के सामने उठाया जाता रहा है कि RSS का इस देश के विकास में क्या योगदान है। उन पांच कार्यों की बात करें जिनके आधार पर आप तय करते हैं कि आखिर RSS की सच्चाई क्या है।. 

1. कश्मीर सीमा पर निगरानी 


RSS की मुख्य उपलब्धि रही है कि उसने उन्नीस सौ 47 में आजादी के बाद से ही भारत पाकिस्तान की सीमा पर बिना किसी ट्रेनिंग के निगरानी रखने का काम किया।

आश्चर्य की बात तो ये है कि ये काम उस समय न तो भारत के प्रधानमंत्री नेहरू कर रहे थे और ना ही स्वतंत्र कश्मीर के महाराजा हरि सिंह। लेकिन RSS के स्वयं सेवक इसके बावजूद सीमा पर मुस्तैदी से जमे रहे और जब जो पाकिस्तानी सेना के जवानों ने सीमा लांघने की कोशिश की तो RSS के स्वयंसेवकों ने जमकर न केवल लोहा लिया बल्कि भारतीय सैनिकों के साथ कई ने तो भारत मां की सीमा की रखवाली करते हुए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए।. 

केवल यही नहीं जब भारत पाकिस्तान के विभाजन से दंगे भड़के और उस समय नेहरू सरकार को कुछ नहीं सूझ रहा था तो ऐसे में RSS ने ही पहल करते हुए पाकिस्तान से जान बचाकर भागे हुए शरणार्थियों के लिए देश में तीन हजार से ज्यादा राहत शिविर लगाए। इन शरणार्थियों में न केवल हिंदू थे बल्कि मुस्लिम भी थे।. 

2. 1962 का भारत चीन युद्ध 


1962 का जिक्र आते ही हमारे चेहरे के सामने भारत चीन युद्ध आ जाता है जिसमें भारत की पराजय हुई थी। लेकिन इस युद्ध में RSS के स्वयंसेवक भारतीय सेना की सहायता के लिए देश भर से जिस प्रकार से सीमा पर पहुंचे थे उसे पूरे देश में सराहा गया था। वहां गए स्वयं सेवकों ने उस समय सैनिक मार्गों की सुरक्षा प्रशासन की सहायता सहायता सामग्री को जरूरतमंदों तक पहुंचाने आदि में विशेष सहायता की थी। RSS का कार्य इतना सराहनीय था कि जवाहर लाल नेहरू को पुलिस 1963 ने गणतंत्र दिवस की परेड में RSS के स्वयं सेवकों को आमंत्रित भी करना पड़ा और केवल दो दिन पूर्व ही मिले इस निमंत्रण पर 3500 से ज्यादा स्वयंसेवक RSS के गणवेश में उपस्थित भी हो गए थे।

3. कश्मीर विलय में भूमिका


आजादी मिलने के कुछ समय बाद ही जब कबीलों के रूप में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला बोल दिया तो उस समय कश्मीर के महाराजा हरि सिंह भारत में कश्मीर के विलय को लेकर कुछ भी फैसला नहीं कर पा रहे थे। ऐसे विकट स्थिति में पाकिस्तानी सेना कश्मीर के अंदर घुसती चली जा रही थी। ऐसे में जवाहर लाल नेहरू भी कोई निर्णय नहीं ले पा रहे थे तो तब के गृहमंत्री सरदार पटेल ने संघ के गुरु। गोलवलकर से सहायता मांगी और गुरु गोलवलकर महाराजा हरि सिंह से मिलने सीधे कश्मीर पहुंच गए। उनके समझाने के बाद ही महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर का विलय भारत में कराने हेतु प्रस्ताव राजधानी दिल्ली भेजा तो इस तरह कश्मीर विलय में भी संघ की भूमिका स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है।. 

4. 1965 के युद्ध में कानून व्यवस्था संभाली


 पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ आया था। शास्त्रीजी ने कानून व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद लेने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह RSS से किया। ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके।

घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयं सेवक ही थे। युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम भी संघ के स्वयं सेवकों ने किया था।. 

5. आपातकाल


1975 जर्मनी से 1977 के बीच आपातकाल के खिलाफ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताजा है। सत्याग्रह में हजारों साल सेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रहकर आंदोलन चलाना शुरू किया। आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने संभाला। जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही मदद से चल सकी थी।. 

अब आप निर्णय लीजिए कि सही क्या है और गलत क्या है हमें कमेंट में जरूर बताइएगा। अब आप RSS के बारे में क्या सोचते।